Saturday 20 December 2014

When break a part Raja Bharatri from a common life or family

उज्जैन के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य के भाई का नाम राजा भतृहरी था। किसी समय में राजा भर्तृहरि बहुत ज्ञानी राजा थे, लेकिन वे दो पत्नियां होने के बावजूद भी पिंगला नाम की अति सुंदर राजकुमारी पर मोहित  गए। राजा ने पिंगला को तीसरी पत्नी बनाया। पिंगला के रूप-रंग पर आसक्त राजा विलासी हो गए। वे पिंगला के मोह में उसकी हर बात को मानते और उसके इशारों पर काम करने लगे। पिंगला इसका फायदा उठाकर व्यभिचारिणी हो गई।
 
वह घुड़साल के रखवाले से ही प्रेम करने लगी। उस पर मोहित राजा इस बात और पिंगला के बनावटी प्रेम को जान ही नहीं पाए। जब छोटे भाई विक्रमादित्य को यह बात मालूम हुई और उन्होंने बड़े भाई के सामने इसे जाहिर किया, तब भी राजा ने पिंगला की चालाकी भरी बातों पर भरोसा कर विक्रमादित्य के चरित्र को ही गलत मान राज्य से निकाल दिया।

बरसों बाद पिंगला की चरित्रहीनता तब उजागर हुई, जब एक तपस्वी ब्राह्मण ने घोर तपस्या से देवताओं से वरदान में मिला अमर फल (जिसे खाने वाला अमर हो जाता है) राजा को भेंट किया। राजा पिंगला पर इतना मोहित था कि उसने वह फल उसे दे दिया, ताकि वह फल खाकर हमेशा जवान और अमर रहे और राजा उसके साथ रह सके।

उसे प्यार कर सके। पिंगला ने वह फल घुड़साल के रखवाले को दे दिया। उस रखवाले ने उस वेश्या को दे दिया, जिससे वह प्रेम करता था। वेश्या यह सोचकर कि इस अमर फल को खाने से जिंदगी भर वह पाप कर्म में डूबी रहेगी, राजा को यह कहकर भेंट करने लगी कि आपके अमर होने से प्रजा भी लंबे वक्त तक सुखी रहेगी।

पिंगला को दिए उस फल को वेश्या के पास देख राजा भर्तृहरि के होश उड़ गए। उनको भाई की बातें और पिंगला का विश्वासघात समझ में आ गया। राजा भर्तृहरि की आंखें खुलीं और पिंगला के लिए घृणा भी जागी। फिर भी पिंगला व उस रखवाले को सजा न देकर वे स्त्री और संसार को लेकर विरक्त हो गए। फौरन सारा राज-पाट छोड़ दिया। आत्मज्ञान की स्थिति में राजा भर्तृहरि ने भर्तृहरि शतक ग्रंथ में समाए श्रृंगार शतक के जरिए सौंदर्य खास तौर पर स्त्री सौंदर्य से जुड़ी वे बातें कहीं, जिनको कोई मनुष्य नकार नहीं सकता।

Sunday 14 December 2014

 Change your self first
सिकंदर के राज्य में किसी लुटेरे का बहुत आतंक हो गया। यह शातिर
लुटेरा अपना काम अत्यंत चतुराई से करता और किसी की पकड़ में नहीं आता।
सिकंदर ने पूरी सैन्य शक्ति उसे पकड़ने में लगा दी। कई महीनों के परिश्रम के
बाद आखिर एक दिन लुटेरा पकड़ा गया। जब सिपाही उसे सिकंदर के सामने लाए तो
सिकंदर ने देखा कि उसके चेहरे पर भय का कोई नामो-निशान नहीं है। सिकंदर
उसके साहस को देखकर चकित भी हुआ और सम्राट होने के अहंकार के कारण थोड़ा
क्रोध भी आया, क्योंकि उसे अपने सामने खड़े लोगों के चेहरों पर भययुक्त
विनम्रता देखने की आदत थी। उसने लुटेरे से कहा, ‘यदि तुम अपने अपराधों के
लिए क्षमा मांग लो, तो तुम्हें छोड़ दिया जाएगा, अन्यथा तुम्हें निरपराध
लोगों को लूटने का दंड दिया जाएगा।’
लुटेरे ने जवाब दिया, ‘मुझे मृत्यु का भय नहीं है, क्योंकि जो पैदा
हुआ है वह एक न एक दिन जरूर मरेगा, किंतु एक लुटेरा दूसरे लुटेरे को क्षमा
नहीं कर सकता।’ सिकंदर ने चकित होकर पूछा, ‘क्या मैं लुटेरा हूं?’ लुटेरे
ने कहा, ‘बेशक आप लुटेरे हैं। यदि मैंने इंसानों को लूटा है तो आपने
राज्यों को लूटा है। जो काम मैंने छोटे पैमाने पर किया, वही आपने बड़े
पैमाने पर किया है। अंतर सिर्फ इतना है कि आप स्वतंत्र हैं और मैं आपका
कैदी।’ लुटेरे के सटीक उत्तर ने सिकंदर को मौन कर दिया और उसने लुटेरे को
रिहा कर दिया। किसी गलत बात का प्रतिकार करने का नैतिक अधिकार तभी प्राप्त
होता है, जब हमारा स्वयं का आचरण उससे मुक्त हो। सत्ताधीशों पर तो इस
सिद्धांत को और अधिक कड़ाई से लागू करना चाहिए, क्योंकि वे एक बड़े जनसमूह के
नेता होते हैं और उन्हें प्रेरणास्रोत के रूप में प्रतिष्ठा दी जाती है।

Tuesday 25 November 2014

जय श्री गणेशाय नमः 
 गणेश जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश,
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
लड्ï्ïडुअन को भोग लगे
सन्त करें सेवा।
एक दन्त दयावन्त चार भुजाधारी।।
मस्तक सिन्दूर सोहे
मूसे की सवारी॥  जय.
अंधन को आँख देत
कोढिऩ को काया।
बांझन को पुत्र देत
निर्धन को माया ॥ जय.
हार चढ़े फूल चढ़े
 और चढ़े मेवा ।
सब काम सिद्घ करें
श्रीगणेश देवा ॥ जय.
जय गणेश देवा
प्रभु जय गणेश देवा,
विघ्न विनाशक स्वामी
सुख सम्पत्ति देवा,
पार्वती के पुत्र कहावो
शंकर सुत स्वामी,
गजानन्द गणनायक
शंकर सुत स्वामी॥ जय।।